संजीवनी वटी जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत होता है यह एक जीवन देने वाली आयुर्वेदिक औषधि है। जैसा कि आप सब जानते हैं रामायण काल में जब लक्ष्मण मूर्छित होकर मृत्यु के निकट पहुंच गए थे। तब हनुमानजी ने हिमालय से संजीवनी बूटी लाकर उन्हें जीवनदान दिया था। बाद में इसी से प्रेरित होकर हमारे ऋषि-मुनियों और आयुर्वेद के जानकारों ने संजीवनी वटी का निर्माण किया, जोकि सांप के काटे के जहर को तो उतारती ही है, साथ ही साथ और अनेकों बीमारियों में जैसे- कफ एंड कोल्ड, मोतिझारा, मियादी बुखार, उल्टी, दस्त तथा पाचन तंत्र को ठीक कर उसे सुचारू रूप से कार्य करने में मदद करती है। आज मैं आपके लिए इसी के बारे में जानकारी लेकर आया हूं।
तो आईये जानते हैं – संजीवनी वटी के गुण और उपयोग | संजीवनी वटी के फायदे, नुकसान और सेवन विधि | Sanjivani vati uses in Hindi
वायविडंग, सोंठ, पीपल, हरड़, बहेड़ा, आंवला, बच, गिलोय, शुद्ध भिलावा, शुद्ध बच्छनाग इन सभी की समान मात्रा लेकर पहले बच्छनाग भिलावे को गोमूत्र में खूब महीन पीसकर उसके बाद अन्य सभी का सूक्ष्म कपड़छन किया हुआ चूर्ण मिलाकर गोमूत्र में मर्दन करके 1-1 रत्ती की गोलियां बनाकर सुखाकर रख लें।
1- सांप के काटे का जहर उतारने वाली, कीटाणु एवं वायरल फीवर को ठीक कर, पसीना लाने वाली व पेशाब को साफ करने वाली बहुत ही गुणकारी औषधि है संजीवनी वटी।
2 – मंदाग्नि होने पर पेट में आमसंचय हो जाता है, जिसके कारण बुखार, पेट में दर्द, पेट में भारीपन, अपचे व पतले दस्त, बेचैनी, सिर में दर्द आदि उपद्रव हो जाते हैं ऐसी हालत में संजीवनी वटी का उपयोग बहुत ही लाभदायक है।
3 – संजीवनी वटी बच्छनाग प्रधान दवा है। अतः यह कुछ उष्ण, स्वेदन और मूत्रल है, इसके इन्हीं गुणों के कारण बुखार होने पर इसका प्रयोग करने से यह रुके हुए पसीने को लाकर, पसीने के मार्ग से तथा पेशाब को खुलकर लाकर, मूत्र मार्ग से ज्वर दोष को निकालकर ज्वर (बुखार) को दूर करती है।
4 – अधिक खा लेने या बिना भूख फिर से खा लेने अथवा दूषित पदार्थों जैसे फास्ट फूड आदि के अत्यधिक सेवन से पाचन क्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिससे अपचन हो जाता है। जिस के कारण एसिडिटी, पेट में भारीपन, दर्द, उल्टी आना, सिर में दर्द, घबराहट, बेचैनी जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं इन दोषों को दूर करने के लिए भी संजीवनी वटी का प्रयोग बहुत ही लाभदायक है।
5 – वायरल फीवर के कारण आपके प्लेटलेट्स कम हो गए हैं तो उस दिशा में भी संजीवनी वटी का प्रयोग करने से बहुत ही फायदा होता है।
6 – यह किसी भी कारण से उत्पन्न हुए आम दोष और उससे होने वाले उपद्रवों को नष्ट कर हमारी पाचन क्रिया को ठीक करती है, तथा जठराग्नि को बढ़ाती है।
2 – सन्निपात ज्वर में 3 से 7 लोंग और 10 से 20 ब्रह्मी की ताजा पत्ती पीसकर 2 से 4 तोला जल में मिलाकर उस जल के साथ इसका सेवन करें।
3 – बुखार के साथ पतले दस्त हों तो 2 टेबलेट संजीवनी वटी लेकर जायफल को जल में घिसकर उसके साथ देनी चाहिए।
4 – सर्प के काटने पर तीन – तीन गोली एक साथ में 2 – 2 घंटे में तीन चार बार दें।
5 – सन्तत ज्वर या मोतीझरा होने पर इसकी एक-एक गोली लोंग के पानी से या सोंठ, अजवाइन, सेंधा नमक को 3-3 रत्ती लेकर, जल के साथ पीसकर, पानी में मिलाकर जरा सा गर्म करके सेवन कराने से आम दोष का भी पाचन हो जाता है, और बुखार उतर जाता है।
6 – विषूची रोग में रोग का वेग तेज होने पर 1-1 घंटे में 1-1 गोली पुदीने का अर्क या पुदीने के स्वरस्य अथवा अर्क कपूर 10 बूंद को जल में मिलाकर उसके साथ या प्याज का रस 1 तोला के साथ सेवन कराएं रोग का वेग कम होने पर तीन-तीन या 6 – 6 घंटे में दवा दें।
विशेष नोट – वैसे तो संजीवनी वटी पूर्णतया आयुर्वेदिक और सुरक्षित औषधि है, लेकिन फिर भी इसका सेवन करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लें।
संदर्भ:- आयुर्वेद-सारसंग्रह. श्री बैद्यनाथ भवन लि. पृ. सं 542
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