परिचय
यह एक प्रकार के खनिज पत्थर ( जिसे हम अकीक पत्थर के नाम से भी जानते हैं ) से बनाई जाती है। यह पत्थर श्वेत, रक्त, नीले तथा पिले भेद से यह चार प्रकार का होता है। इसमें श्वेत वर्ण वाला श्रेष्ठ होता है, लेकिन हकीमों ( यूनानी चिकित्सकों ) के मत से लाल वर्ण वाला भस्म बनाने के लिए सर्वोत्तम होता है। यह मुंबई, बांदा और खंभात से आता है। इसकी कई किस्में यमन और बगदाद से भी आती हैं।
इस पत्थर से बनाई गई अकीक भस्म किसी भी कारण से आई हृदय की कमजोरी, मानसिक कमजोरी को दूर कर, आंखों की रोशनी को तेज करती है। साथ ही साथ यौन दुर्बलता को दूर कर शरीर में शक्ति का संचार करती है।
शोधन विधि
अकीक पत्थर को लेकर आग में तपा तपा कर गुलाब जल में 21 बार बुझा दें तो यह पत्थर खिल जाता है और मुलायम भी हो जाता है।
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दूसरी विधि
अकीक के टुकड़ों को आग पर रखकर खूब तपाकर 7 बार त्रिफला क्वाथ में बुझाने से भी यह शुद्ध हो जाता है।
अकीक भस्म बनाने की विधि
ऊपर बताए गए तरीके से शुद्ध किया हुआ अकीक पत्थर का महीन चूर्ण करके अर्क गुलाब या घृतकुमारी (ग्वारपाठा) के रस में खरल करके टिकिया बना लें, सूख जाने पर शराब – संपुट में बंद कर गजपुट में तीन बार फूंक देने से भस्म तैयार हो जाती है। फिर इस भस्म को गाय के दूध में घोंटकर टिकिया बना, सुखाकर, गजपुट में फूंक दें, दूध में टिकिया बांधने के बाद गजपुट में देने से भस्म फूलती है, अतः संपुट में थोड़ी जगह खाली रखें, इससे भस्म बहुत मुलायम हो जाती है।
– आरोग्य प्रकाश
अकीक भस्म के फायदे | गुण और उपयोग
1 – यह भस्म हृदय की सभी बीमारियों में लाभदायक है यह हृदय को ताकत देकर उसकी कमजोरी को दूर करती है नसों की ब्लॉकेज को खोलती है और ह्रदय को सुचारू रूप से काम करने में मदद करती है।
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2 – अकीक भस्म को खाने के साथ-साथ अकीक पत्थर का लॉकेट बनाकर भी पहना जाता है। वह भी हृदय की कमजोरी को दूर कर ताकत प्रदान करने का काम करता है।
3 – ऐसे सभी जन जिनको गर्मी बहुत लगती है। हाथों – पैरों में जलन महसूस होती रहती है, पैरों के तलवों से ऐसा लगता है, जैसे अग्नि निकल रही है। उन सबको अकीक भस्म का सेवन आंवले के मुरब्बे के साथ करना बहुत फायदेमंद है। क्योंकि यह दाह की बीमारी को नष्ट करने का काम करती है।
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4 – अकीक भस्म के सेवन से बढ़ी हुई तिल्ली (सूजन आ जाना) एवं यकृत संबंधी समस्त विकारों का नाश होता है।
5 – जिनको भी लकवे की शिकायत है या मिर्गी के दौरे पड़ते हैं, मूर्छा आती है, या डिप्रेशन का शिकार है। वह भी इसके सेवन से लाभ उठा सकते हैं क्योंकि अकीक भस्म दिमाग की नसों को ताकत देने का काम करती है। और मस्तिष्क संबंधी समस्त विकारों का नाश करती है।
6 – यह पथरी को भी बाहर निकालने का काम करती है। फिर चाहे पथरी पित्ताशय में हो या गुर्दे में।
7 – जिन व्यक्तियों का सूखी खांसी से बुरा हाल है खांस खांस कर चेहरा पूरा लाल हो जाता है। कफ सूखकर जम गया है। उन सभी के लिए भी अकीक भस्म का सेवन बहुत ही गुणकारी है।
8 – जिनकी आंखों की ज्योति कमजोर है। उन सबको अकीक भस्म का सेवन आंवले के मुरब्बे के साथ सुबह खाली पेट करना चाहिए। ऐसा करने से आंखों की रोशनी तेज होती है। इसको बाहर से आंखों में सुरमे की तरह भी डाला जाता है।
9 – जिनको भी पसीना अधिक आता है। हद से ज्यादा गर्मी लगती है। पेशाब रुक रुक कर व जलन के साथ आता है। पेडू में दर्द रहता है। उन सबके लिए भी अकीक भस्म का सेवन अत्यंत लाभकारी है।
10 – अत्यधिक पित्त बढ़ने के कारण अगर कहीं से भी आपको खून निकल रहा है, जैसे नाक से खून आना, थूक के साथ खून आना, गुदा मार्ग से खून आना या पेशाब के जरिए खून आना, ऐसे समय में भी अकीक भस्म का सेवन बहुत फायदेमंद है, क्योंकि यह रक्तपित्त को जड़ से खत्म करने के लिए अत्यंत गुणकारी औषधि है।
11 – खूनी बवासीर होने पर अकीक भस्म का सेवन नागकेसर चूर्ण के साथ करने से बहुत अच्छा लाभ होता है।
12 – जिनको गैस, एसिडिटी, खट्टी डकार आने की समस्या है उनके लिए भी अकीक भस्म का सेवन अत्यंत गुणकारी है।
13 – जिन महिलाओं को सफेद पानी व रक्त प्रदर की समस्या है, उन सभी महिलाओं को अकीक भस्म का सेवन अवश्य करना चाहिए।
यौन रोगों में अकीक भस्म का उपयोग
वे सभी पुरुष जो अत्यधिक शारीरिक कमजोरी का अनुभव करते हैं जिनका वीर्य पतला हो गया है और अब कामोत्तेजना नहीं बनती, उन सबके लिए अकीक भस्म अत्यंत गुणकारी है, क्योंकि यह वीर्य को गाढ़ा करने के साथ-साथ संभोग की शक्ति को बढ़ाने वाली औषधि है।
यौन दुर्बलता को दूर करने के लिए अकीक भस्म का सेवन अश्वगंधा चूर्ण के साथ करने से अपूर्व लाभ होता है।
अकीक भस्म की मात्रा और सेवन विधि
1 से 3 रत्ती की मात्रा सुबह-शाम शहद, मक्खन या रोगानुसार अनुपान के साथ लेने से बहुत अच्छा लाभ होता है।
विशेष नोट – अकीक भस्म वैसे तो एक पूर्णतया आयुर्वेदिक और सुरक्षित औषधि है, फिर भी इसे लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लें।
संदर्भ:- आयुर्वेद-सारसंग्रह. श्री बैद्यनाथ भवन लि. पृ. सं. 108
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Great sir keep writing