• Sun. Dec 15th, 2024

Anant Clinic

स्वस्थ रहें, मस्त रहें ।

ताम्र (तांँबा) भस्म के फ़ायदे नुकसान | गुण उपयोग और सेवन विधि | Tamra bhasma uses in Hindi

Byanantclinic0004

Jul 4, 2021



 

Table of Contents

परिचय

ताँबे के बर्तन में पानी तो आप सब ने पिया होगा लेकिन क्या आप जानते हैं, इसी तांबे से ताम्र भस्म भी बनाई जाती है जो पूर्णत: आयुर्वेदिक और अनेक रोगों में उपयोगी जैसे- उदर रोग, प्रमेह, अजीर्ण, विषमज्वर, सन्निपात, कफोदर, प्लीहोदर, यकृत् विकार, परिणामशूल, हिचकी, अफरा, अतिसार, संग्रहणी, पांडू, मांसांर्बुद, गुल्म, कुष्ठ, कृमि रोग, हैजा, अम्लपित्त, प्लेग आदि में ताम्र भस्म एक महा औषधि है। अनेक रस-रसायन औषधियाँ इसके योग से बनाई जाती हैं। यह अत्यंत शक्तिवर्ध्दक, रुचिकारक और कामोद्दीपक है। 

तो आइए जानते हैं ताम्र भस्म कैसे बनाई जाती है और ताम्र भस्म के फायदे, नुकसान और सेवन विधि के बारे में।

ताम्र भस्म के फायदे गुण और उपयोग : Tamra bhasma uses in Hindi

उदर रोग, प्रमेह, अजीर्ण, विषमज्वर, सन्निपात, कफोदर, प्लीहोदर, यकृत् विकार, परिणामशूल, हिचकी, अफरा, अतिसार, संग्रहणी, पांडू, मांसांर्बुद, गुल्म, कुष्ठ, कृमि रोग, हैजा, अम्लपित्त, प्लेग आदि में ताम्र भस्म एक महा औषधि है। अनेक रस-रसायन औषधियाँ इसके योग से बनाई जाती हैं। यह अत्यंत शक्तिवर्ध्दक, रुचिकारक और कामोद्दीपक है। यकृत में विकृति होने पर पित्त का निर्माण बहुत कम होता है और कभी-कभी यकृत् में पथरी भी हो जाती है। इन सभी दोषों के लिए ताम्र भस्म बहुत ही गुणकारी औषधि है। 


                                                     

ताम्र भस्म पित्त की विकृति के कारण होने वाले दर्द को भी शांत करती है।

 
यकृत और पित्ताशय पर इसका असर अधिक पड़ता है, यकृत बढ़ जाने से पित्ताशय संकुचित हो गया हो या पित्ताशय से पित्त गाढ़ा होने की वजह से स्रावित न होता हो या पित्ताशय के किसी भाग में विकृति आ गई हो, इत्यादि अनेकों विकारों या इनमें से किसी एक के कारण पेट में दर्द होता हो या पित्ताशय में पथरी या यकृत के कण जम जाने के कारण ही दर्द होता हो तो ताम्र भस्म 2 रत्ती, कर्पद भस्म 2 रत्ती दोनों को एकत्र मिलाकर करेले के पत्तों के रस या घी और चीनी में मिलाकर लेने से बहुत ही अच्छा लाभ होता है।
 
अष्ठीला और गुल्म की गांँठ को गलाने के लिए बढ़ी हुई प्लीहा को नष्ट करने के लिए ताम्र भस्म 1 रत्ती, शंख भस्म 2 रत्ती और मूली क्षार 4 रत्ती कुमार्यासव के साथ मिलाकर सेवन करने से बहुत अच्छा लाभ होता है। साथ ही साथ यदि साधारण रेचक दवा की भी एकाध मात्रा दे दी जाए तो और ज्यादा अच्छा रहेगा।
 

अलग-अलग बीमारियों में ताम्र भस्म के फायदे और सेवन विधि : Tamra bhasma benefits in Hindi

ताम्र (तांँबा) भस्म के फ़ायदे, नुकसान और सेवन विधि | Tamra bhasma uses in Hindi |TAMRA BHASMA | tamra bhasma price in india | baidyanath tamra bhasma price | tamra bhasma benefits in hindi | ताम्र (तांँबा) भस्म के गुण और उपयोग | ताम्र (तांँबा) भस्म के लाभ और हानि | ताम्र (तांँबा) भस्म के फायदे बताओ | ताम्र (तांँबा) भस्म की कीमत | बैद्यनाथ ताम्र (तांँबा) भस्म के घटक
Tamra bhasma uses in Hindi



जलोदर में

जलोदर में सिर्फ ताम्र भस्म का उपयोग न करें , यह मूत्रप्रवर्तक नहीं है, अतः इसके साथ फिटकरी भस्म 4 रत्ती, कुटकी चूर्ण 2 माशे मिला कर सेवन कराएं। ऊपर से पुनर्नवा और मकोय का स्वरस 5 तोला पिलाने से बहुत अधिक फायदा करती है। ( और पढ़ें- बंग भस्म के फायदे और सेवन विधि। )

हैजा में

ताम्र भस्म चौथाई रत्ती, कर्पूर रस 2 गोली, प्याज के रस से या मयूर पूच्छ भस्म के साथ मिलाकर आधे-आधे घंटे पर सेवन कराएं। जब वमन और दस्त कुछ कम होने लगे तो हृदय को ताकत देने वाली औषधियां भी साथ में देना शुरू करें।

अम्लपित्त में

अम्लपित्त की बढ़ी हुई अवस्था में ताम्र भस्म आधी रत्ती, स्वर्णमाक्षिक भस्म 1 रत्ती में मिलाकर शहद से दें और ऊपर से 2 तोला मुनक्का और 2 तोला हरड़ के छिलके को आधा सेर पानी में पकाकर एक एक पाव शेष रहे तब छानकर यह क्वाथ पिला दें, इससे 1-2  साफ दस्त हो जाएंगे और अम्लता का दोष भी दूर हो जाएगा।

शरीर में रक्त बढ़ाने के लिए

आधुनिक वैज्ञानिकों के मतानुसार शरीर में रक्त बढ़ाने के लिए लोह भस्म का प्रयोग करना अच्छा बताया है और उनके अनुसार लोह भस्म में ताम्र का अंश भी रहता है अतः हम कह सकते हैं कि यह रक्त बढ़ाने में भी समर्थ है।

मन्दाग्नि में

आपके पाचन तंत्र की गड़बड़ी के कारण या अन्य किसी भी कारण से आप की अग्नि मंद पड़ गई है यह मंदाग्नि से उत्पन्न रोगों में लोह और ताम्र भस्म का मिश्रित प्रयोग करना चाहिए इन सभी दोषों के लिए बहुत अच्छा योग है।

कफज तथा वातज प्रमेह में 

कफज प्रमेह में कच्चे गूलर फल का चूर्ण एक माशा के साथ इसका ( ताम्र भस्म ) प्रयोग करना बहुत ही गुणकारी है। वातज प्रमेह में गुर्च सत्व 4 रत्ती और मधु के साथ इसका प्रयोग करना अत्यंत लाभकारी होता है।

अजीर्ण अर्थात बदहजमी में

अजीर्ण अर्थात बदहजमी होने पर ताम्र भस्म त्रिकटु चूर्ण एक माशा और मधु के साथ सेवन करना बहुत ही फायदेमंद होता है।

कफ प्रधान सन्निपात मे

सन्निपात ज्वर जिसमें कफ की प्रधानता हो, होने पर अदरक का स्वरस और मधु के साथ ताम्र भस्म का प्रयोग महा फलदाई है। ( और पढ़ें- मलेरियाा, मियादी बुखार, इनफ्लुएंजा में महाज्वरांकुश रस के फायदे और सेवन विधि। )

सब प्रकार के शूलों ( दर्दों ) मेंं

लगभग सभी प्रकार के शूलों ( दर्दों ) मेंं ताम्र भस्म एक रत्ती, शुद्ध गंधक एक रत्ती, इमली क्षार 1 माशा मिलाकर गाय के घी के साथ देना अति उत्तम माना जाता है। ( और पढ़ें- लगभग सभी तरह के पेट दर्द के लिए शूलवर्जनी वटी के फायदे और सेवन विधि। )

हिक्का और हिचकी में

हिक्का में जम्बीरी नींबू रस के साथ ताम्र भस्म का प्रयोग करना अच्छा लाभ करता है, तथा हिचकी में विषम भाग घृत और मधु से सेवन कराएं अवश्य ही अच्छा लाभ होगा।   


                                                

आमातिसार में

आम दोष के कारण अतिसार (दस्त) अर्थात आमातिसार होने पर बेलगिरी चूर्ण दो माशा, पिप्पली चूर्ण 3 रत्ती को ताम्र भस्म एक रत्ती के साथ देना लाभदायक है।

पांडू अर्थात पीलिया रोग में

पांडू अर्थात पीलिया रोग होने पर ताम्र भस्म को नवायस लोह तथा मंडूर भस्म के साथ सेवन करना उत्तम माना जाता है।

कृमि रोग में

शरीर में कहीं भी कृमि रोग होने पर या पेट में कीड़े होने पर वायविडंग चूर्ण और सोमराजी (बाकूची) चूर्ण दो माशे के साथ एक रत्ती ताम्र भस्म का प्रयोग करना अत्यंत फलदाई है। इसके अलावा कुष्ठ रोग होने पर बाकुची चूर्ण के साथ ताम्र भस्म का प्रयोग करना चाहिए। ( और पढ़ें- पेट के कीड़ों की रामबाण औषधि- कृमि कुठार रस के फायदे और सेवन विधि। )

यकृत दाह (जलन) में

यकृत में दाह अर्थात जलन होने पर ताम्र भस्म एक रत्ती को गुर्च सत्व 4 रत्ती के साथ बेदाना अनार के रस या आमला मुरब्बा की चासनी के साथ देने से बहुत अधिक लाभ मिलता है। इसके अलावा अम्लपित्त होने पर कुष्मांड रस और मिश्री के साथ सेवन कराना चाहिए।

ताम्र भस्म के नुकसान : Tamra bhasma ke nuksan,
Tamra Bhasma Side Effect in Hindi

1- इसमें कोई संदेह नहीं कि ताम्र भस्म एक गुणकारी आयुर्वेदिक औषधि है, लेकिन इसका प्रयोग केवल चिकित्सक की देखरेख में ही किया जाना उत्तम है।
2 – ताम्र भस्म अत्यंत उग्र, तीक्ष्ण, भेदी और पित्तस्रावी है। अतः इस दवा का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। ताम्र में – वान्ती और भ्रान्ति का दोष विद्यमान रहता है। अतः इस दोष से रहित भस्म का ही उपयोग करना चाहिए।
 
3 – अधिक खुराक तथा लंबे समय तक सेवन करने पर ताम्र भस्म के दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
 
4 – जिन व्यक्तियों का बीपी हाई रहता है उन्हें इसका सेवन करने से बचना चाहिए।
5 – सही प्रकार से बनी हुई ताम्र भस्म का ही सेवन करें।
 
6 – चिकित्सक की देखरेख में सही खुराक और समय पर तथा सीमित अवधि के लिए सेवन करने पर बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे।
 
ताम्र भस्म के फायदे के बारे मे तो हमने जान लिया चलिए अब हम- ताम्र भस्म की परीक्षा-विधि, लक्षण, ताम्र शोधन विधि तथा ताम्र से भस्म बनाने की विधि के बारे में भी जान लेते हैं

ताम्र भस्म की परीक्षा-विधि 

सूर्य की किरणों द्वारा देखने से चंद्रिका रहित मालूम हो या इसकी भस्म थोड़ी मात्रा में दही में डालकर कांच के पात्र में 12 घंटा तक रखने पर भी दही में नीलापन या हरापन न दिखाई पड़े तो विशुद्ध ताम्र भस्म समझें।
यदि अशुद्ध ताम्र भस्म हो तो इसको भी घीकुमारी के रस में घोटकर टिकिया बना 21 पुट देने से वान्ति एवं भ्रांति दोष से ताम्र मुक्त हो जाता है।
 

ताम्र के नेपाल और म्लेच्छ ये दो भेद हैं। इनमें नेपाल संज्ञक ताम्र श्रेष्ठ होता है। यही भस्मादिक काम के लिए भी लिया जाता है। इसका विशिष्ट गुरुत्व 8 है तथा 1080 शतांश तापमान पर यह पिघल जाता है‌। ताप और विद्युत् की दाहकता में चाँदी के बाद ताम्र आता है।

नेपाली ताम्र के लक्षण

जो ताम्र, चिकना,भारी, लाल वर्ण, कोमल, चोट मारने पर चूर्ण न होकर बढ़ता हो वह नेपाली ताम्र है। ( और पढ़ें- हृदय की कमजोरी, मानसिक कमजोरी तथा यौन कमजोरी में अकीक भस्म के फायदे और सेवन विधि )

म्लेच्छ ताम्र के लक्षण

जो ताम्र सफेद या कृष्ण (काला) तथा थोड़ा-थोड़ा लाल हो और अत्यंत कठोर हो, खूब साफ करने पर भी काला ही बना रहे, यह म्लेच्छ संज्ञक ताम्र है। भस्मादिक कार्य में इसे नहीं लेना चाहिए।



भस्म के लिए यदि इससे भी उत्तम ताम्र लेना हो, तो तूतिया से तांँबा निम्नलिखित विधि से निकाल कर भस्म करें अथवा बिजली के तारों को जलाकर साफ करके उनकी भस्म बनावें। पुराने नेपाली पैसे भी उत्तम ताम्र के बने होते हैं। पुराने वैद्य उनको भी भस्म बनाने के काम में लेते हैं।

तूतिया से तांँबा निकालने की विधि

2 सेर तूतिया को पीसकर एक साथ लोहे की छोटी कड़ाही में बिछा दें और उस लोहे की कड़ाही को एक बड़े लोहे की कड़ाही में रख दें, फिर उस कड़ाही में पड़े हुए तूतिया को ढक दें। बाद में उस कड़ाही में 10 सेर मोटा कुटा हुआ त्रिफला चूर्ण और पक्का 1 मन पानी डालकर कड़ाही को खुली जगह में रख दें। जिससे सूर्य की किरणें और चंद्रमा की चांदनी बराबर कड़ाही में पड़ती रहे। इस तरह 2 महीने तक लगातार छोड़ दें। बाद में पानी छान लें। यह पानी स्याही (लिखने) के काम में आएगा और छोटी कड़ाही को बाहर निकाल कर उसके पेंदे में जमे हुए विशुद्ध तांँबे के चूर्ण को चाकू से खुरच कर निकाल लें। इसमेें करीब 40 तोला विशुद्ध तांँबा आपको मिलेगा। यह ताँबा नेपाली तांबे से भी ज्यादा उत्तम होगा। 

-र. सा.

और पढ़ें – बैक पेन, मसल्स पेन, सर्वाइकल, ऐंठन, गठिया बाय के लिए रामबाण औषधि त्रयोदशांग गुग्गुल के फायदे नुकसान और सेवन विधि।

ताम्र शोधन विधि

उपरोक्त विधि से तूतिया से निकाले हुए तांबे को अथवा बिजली के तारों से निकाले ताम्र को अग्नि में खूब लाल करके आक के पत्तों के स्वरस में सात बार बझावें। फिर दो सेर इमली के पत्तों को 10 सेर पानी में उबालकर 5 सेर शेष रहने पर उतारकर छान लें। इस 5 सेर काढ़े में सेंधा नमक आधा सेर और उपरोक्त तांबा आधा सेर डालकर चार पहर तक आंँच दें। यदि पानी जल जाए तो बीच में गोमूत्र डालते जाएं। यदि गोमूत्र नहीं मिले तो पानी से भी काम चल सकता है इस ताम्र की इतनी शुद्धि ही पर्याप्त है। क्योंकि इस ताम्र में नेपाली ताम्र जैसा दोष नहीं रहता है। इस क्रिया से ताँबा शुद्ध हो जाता है।

दूसरी विधि

नेपाली तांँबे के पत्रों को लेकर आग में तपाकर तेल, तक्र, गोमूत्र, कांजी और कुलथी के क्वाथ में दो-तीन बार बुझाने से तांबा शुद्ध हो जाता है। ( और पढ़ें- प्रमेह, रसौली, सूजन, नेत्र रोग तथा यौन रोगों में यशद भस्म के फायदे नुकसान और सेवन विधि।)



ताम्र भस्म बनाने की विधि 

हिंगुलोत्थ पारद 1 तोला और शुद्ध गंधक 2 तोला की कज्जली बना कर नींबू के रस में मर्दन कर शुद्ध ताम्र-पत्रों पर लेप कर, सूखा, संपुट में बंद कर, संपुट की संधि को कपड़मिट्टी से संधि बंद कर, धूप में सूखने दें। फिर हल्के पुट (अर्धगजपुट) की आंच में फूँक दें। ठण्डा होने पर ताम्र को निकाल, उसमें सम भाग, शुद्ध गंधक का चूर्ण मिला, नींबू के रस में घोंटकर, टिकिया बनाकर ऊपर बताई गई विधि से पुनः पुट दें। इस प्रकार दो पुट देकर भस्म को एक काँच के पात्र में डालकर ऊपर से खट्टे नींबू का रस देकर एक दिन-रात रहने दें। दूसरे दिन देखें यदि नींबू के रस में हरापन नहीं आया हो, तो भस्म ठीक हो गई है, ऐसा समझकर उसको काम में लावें। यदि नींबू के रस में हरापन आ जाए तो समभाग गन्धक के साथ नींबू के रस में ऊपर बताई गई विधि से घोंटकर एक पुट और दे दें। परन्तु इस बार आँच पहले से भी कम दें। बाद में ऊपर बताई गई विधि से दोबारा परीक्षा कर लें। ताँबे की भस्म एक साथ में आधा सेर तक ही बनाएं।

                                                                                                                                                   -सि. यो. सं. 

दूसरी विधि 

तांबे के तारों को शोधन विधि से शुद्ध करें, बाद में बराबर सेंधा नमक और गंधक मिलाकर नींबू या इमली रस से घोंटकर टिकिया बना, सुखाकर पुट दें। तीन-चार पुट देने के बाद पिसाई कराकर बर्तन पर कपड़ा बांध कर उस पर थोड़ी-थोड़ी भस्म और पानी डालकर हाथ से चलाकर छानते जाएं। इस प्रकार सारी भस्म को छान लें। पश्चात तीन-चार घंटे पड़ा रहने दें। बाद में पानी निथार कर अलग कर दें। जब तक हरा तथा खराब स्वाद का पानी निकलता रहे, तब तक धुलाई होनी चाहिए। अर्थात भस्म के पात्र में पानी डालकर उसे चलाकर तीन-चार घंटे पड़ा रखकर पानी निथार कर अलग करते रहना चाहिए। काफी धुलाई करने पर भी यदि स्वाद ठीक ना हो तथा वान्ति-भ्रांति का दोष दूर ना हो, तो भस्म में खट्टी दही मिलाकर 3 दिन रखें, बाद में पानी डालकर उपरोक्त प्रकार से तीन चार बार धुलाई करने से उपरोक्त दोष भी ठीक हो जाएगा तथा भस्म नि: स्वाद भी हो जाएगी। स्वाद रहित होने पर भस्म के तेैल से अष्टमांश मीठा तेल देकर मंद आंँच में भट्ठी पर पकावें। भर्जन होने पर अच्छी तरह घिसाई करा महीन कपड़े से छानकर कांच या चीनी मिट्टी के पात्र में रख लें।

नोट- 

हर बार पुटान्त में अच्छी घुटाई होना आवश्यक है। पुट में आँच मन्दी देनी चाहिए अन्यथा तांँबे के डाले बाँध झारेंगे।

-र. सा. सं. के आधार पर स्वानुभूत विधि।

सोमनाथी ताम्र भस्म

शुद्ध पारद 2 तोला, शुद्ध गंधक 2 तोला, हरताल 1 तोला, मैनशील 6 माशे – सब की महीन कज्जली बना लें और 2 तोला शुद्ध ताम्र चूर्ण (महीने) लें। पश्चात् गर्भयन्त्र में थोड़ी कज्जली बिछाकर उस पर ताम्र का महीन चूर्ण रखें और उसके ऊपर कज्जली रखें , इसी प्रकार ताम्र चूर्ण और  कज्जली  की तह जमाकर यन्त्र के मुख को बंद करके चार पहर तक अग्नि पर पकाएं, स्वांगशीतल होने पर ताम्र भस्म को निकाल कर पीस कर रख लें। यही सोमनाथी ताम्र भस्म है।
-र. र. स.
नोट –
 
कुछ अन्य ग्रन्थों में कूपीपक्व विधान से सोमनाथी ताम्र भस्म का विधान है, वह भी श्रेष्ठ है।
 
 
 

मात्रा और अनुपान

आधी रत्ती से 1 रती, दिन में दो बार शहद से या आवश्यकता अनुसार उचित अनुपान से प्रयोग करने चाहिए।

ताम्र भस्म की कीमत

ताम्र भस्म को आप आसानी से ऑनलाइन खरीद सकते हैं। इसकी 5 ग्राम की डिब्बी की कीमत 200₹ है। 
 
संदर्भ:- आयुर्वेद-सारसंग्रह. श्री बैद्यनाथ भवन लि. पृ. सं. 126
 
 
जानकारी पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें।
 


 

(Visited 802 times, 1 visits today)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *