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गर्भपाल रस के फायदे नुकसान, गुण उपयोग और सेवन विधि | Grabhpal ras benefits in hindi

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Mar 6, 2020
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परिचय  

गर्भपाल रस जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर होता है, गर्भ की रक्षा (गर्भिणी स्त्रियों की ही नहीं अपितु उनके गर्भ में पल रहे बच्चे की भी ) करने वाला। जिन भी महिलाओं को बार-बार गर्भपात होने की समस्या है, या सुजाक रोग होने के कारण गर्भाशय कमजोर हो गया है, या अन्य किसी विकृति के कारण गर्भधारण करने में कोई समस्या आ रही है या गर्भ ठहरने से लेकर प्रसवावस्था तक अनेक तरह के उपद्रव होते रहते हैं, जैसे भोजन करते ही उल्टी हो जाना, पेट में अन्न का ना रहना, चक्कर आना, घबराहट होना, कमर में दर्द होना आदि लक्षणों में भी गर्भपाल रस बहुत ही कारगर दवा है।
इसके अलावा महिलाओं की ओर कई सारी विकृतियां या परेशानियां जो गर्भ धारण से लेकर प्रसवावस्था के दौरान या प्रसव के कई महीनों के बाद तक उनको सहनी पड़ती हैं। ऐसी सभी महिलाओं के लिए यह एक रामबाण औषधि है।
तो आइए जानते हैं गर्भपाल रस के मुख्य घटक, फायदे नुकसान, गुण उपयोग और सेवन विधि के बारे में

गर्भपाल रस के मुख्य घटक 

१- शुद्ध सिंगरफ
२- नाग बचन
३- बंग भस्म
४- दालचीनी
५- तेजपात
६- छोटी इलायची
७- सोंठ
८- पीपल
९- मिर्च
१०- धनियां
११- स्याह जीरा
१२- चव्य ( चाव )
१३- मुनक्का
१४- देवदारू
सभी को १-१ तोला की मात्रा में लें, और
१५- लोह भस्म १/२ तोला लें।

गर्भपाल रस बनाने की विधि

सभी चीजों के इकट्ठा करके कूट पीसकर कपड़छन करके महीन चूर्ण बना लें, और इन सब को कोयल ( सफेद अपराजिता ) के रस में घोटकर 1-1 रत्ती की गोलियां बनाकर सुखा लें।
जो बंधु घर पर दवा बनाकर प्रयोग करना चाहते हैं यह सारे घटक और विधि उन्हीं के लिए है नहीं तो गर्भपाल रस बाजार में आसानी से उपलब्ध है। इसको लगभग सभी मुख्य आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनियां बनाती हैं।

गर्भपाल रस के फायदे नुकसान, गुण उपयोग और सेवन विधि | Grabhpal ras benefits in hindi 

१- नाग, बंग और हिंगुल के प्रधान उत्पादन से बना हुआ यह रस सगर्भा स्त्री के समस्त विकारों को नष्ट करता है।यह भी पढ़ें – बैक पेन, मसल्स पेन, सर्वाइकल, ऐंठन, गठिया बाय के लिए रामबाण औषधि त्रयोदशांग गुग्गुल के फायदे नुकसान और सेवन विधि।

२- सूजाक, आतशक अथवा दुग्ध-दोष के कारण गर्भपात होने की संभावना में मंजिष्ठादि क्वाथ के साथ इसका सेवन करना चाहिए।
३- गर्भिणी के अतिसार, ज्वर, पाण्डू, मंदाग्नि, मलावरोध, शिर:शूल ( सिर दर्द ), अरुचि ( किसी चीज में मन न लगना ) आदि विकारों में आवश्यकतानुसार इसका प्रयोग किया जा सकता है।
४- गर्भपाल रस गर्भिणी रोग की प्रसिद्ध दवा है। अतएव यह गर्भाशय की अशक्ति या बार-बार गर्भस्राव अथवा गर्भपात होना आदि विकारों में मुख्यतः उपयोग में लाई जाती है।यह भी पढ़ें – बालों कि हर समस्या का समाधान – महाभृंगराज तेल 

५- जिस स्त्री को गर्भ या सूजाक होने के कारण गर्भाशय कमजोर हो, गर्भधारण करने में असमर्थ हो, गर्भस्राव या पतन की संभावना बनी रहती हो, ऐसी सभी स्त्रियों को गर्भपाल रस के उपयोग से अच्छा लाभ होता है। इस तरह के दोष होने पर रक्तशोधक औषधि के साथ गर्भपाल रस देना चाहिए।
६- जिन महिलाओं को अधिक मानसिक चिंता या हिस्टीरिया आदि दोषों के कारण भी गर्भपात या गर्भ स्राव हो जाता है उन सभी महिलाओं को ऐसी स्थिति में मुनक्का-क्वाथ या मुनक्का के पानी के साथ गर्भपाल रस दें।
( अच्छी क्वालिटी के 15-20 मुनक्का शाम को भिगोकर रख दें और सुबह मुनक्का को निचोड़ कर उस पानी के साथ गर्भपाल रस का सेवन करें, ऐसे ही सुबह मुनक्का भिगो दें और शाम को उसके पानी के साथ गर्भपाल रस का सेवन करें। )यह भी पढ़ें – नीम के फायदे और नुकसान 

७- उपदंश के कारण गर्भाशय दूषित हो, गर्भधारण करने में सर्वथा असमर्थ हो जाने से बन्ध्यापन दोष आ गया हो, तो गर्भपाल रस के साथ अष्टमूर्ति रसायन या बंगेश्वर रस मिलाकर देने से उक्त दोष मिट जाते हैं।
८- स्त्री की बीज वाहिनी शक्ति कमजोर हो जाने से अथवा जननेंद्रिय की विकृति से गर्भधारण नहीं होता हो या गर्भ – स्थापन ही ना होता हो, तो ऐसी स्थिति में बंग भस्म या त्रिवंग भस्म के साथ गर्भपाल रस के सेवन से गर्भस्थापन में सहायता मिलती है।
९- कभी-कभी गर्भवती स्त्री को गर्भधारण से लेकर प्रसवावस्था पर्यन्त अनेक तरह के उपद्रव होते रहते हैं। जैसे- भोजन करते ही वमन हो जाना, पेट में अन्न ना रहना, चक्कर आना, घबराहट होना, कमर में दर्द होना आदि लक्षण होने पर गर्भपाल रस के साथ कामदुधा रस, प्रवाल पिष्टी या स्वर्ण माक्षिक भस्म के साथ देने से बहुत लाभ होता है।
१०- किसी-किसी स्त्री को गर्भधारण होकर प्रसव भी अच्छी तरह हो जाने के पश्चात प्रसूति गृह में ही अथवा प्रसूति गृह के बाहर होने पर दो-चार महीने बाद संतान की मृत्यु हो जाती है, और यह मृत्यु एक तरह की आदत के रूप में परिणत हो जाती है, जिससे बार-बार संतान का मृत्युजन्य दुःख स्त्री को भुगतना पड़ता है। यह दोष रज-वीर्य की विकृति के कारण अथवा माता के दुग्ध दोष से यकृत् या उदर-विकार होने पर होता है। चाहे किसी भी दोष से यह विकृति क्यों ना हो, गर्भपाल रस के सेवन से सब दूर हो जाते हैं।
११- इसमें हिंगुल योगवाही तथा रसायन है। नाग और बंग भस्म गर्भाशय पुष्ट करने वाली है। त्रिजात, जीरा तथा मुनक्का – यह तीनों पित्तशामक, बल्य और कोष्ठ के क्षोभ को दूर करने वाले हैं। लोहभस्म बलदायक और गर्भाशय की विकृति को नष्ट कर पुष्ट करने वाली है। सफेद अपराजिता – वात वाहिनी नाड़ी को सुधारती है तथा गर्भस्थापन कर गर्भाशय को पुष्ट करती है। यह मूत्रप्रवर्तक तथा शीत वीर्य है।

गर्भपाल रस के नुकसान

१- गर्भपाल रस को चिकित्सक की देखरेख में ही लिया जाना चाहिए।
२- गर्भपाल रस को ज्यादा लंबे समय तक लेने से दुष्परिणाम हो सकते हैं, अतः चिकित्सक की देखरेख में ही उचित समयावधि के दौरान ही इसका सेवन करें।
३- सबसे महत्वपूर्ण बात गर्भपाल रस को बच्चों की पहुंच से दूर रखें।

मात्रा अनुपान और सेवन विधि 

१ से २ गोली सुबह-शाम गुडूची-सत्व और मधु से या धारोष्ण दूध के साथ अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ दें।
दोस्तों इस पोस्ट में हमने गर्भपाल रस के बारे में आपसे जानकारी साझा की है, उम्मीद है आपको पसंद आई होगी। पसंद आने पर लाइक, शेयर और कमेंट जरूर करें आपका एक शेयर उन महिलाओं के लिए एक वरदान की तरह होगा जो इस तरह के रोग से पीड़ित हैं।
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